Category Garuda puran

छठा अध्याय

जीवकी गर्भावस्थाका दुःख, गर्भमें पूर्वजन्मोंके ज्ञानकी स्मृति, जीवद्वारा भगवान से अब आगे दुष्कर्मोंको न करनेकी प्रतिज्ञा, गर्भवाससे बाहर आते ही वैष्णवी मायाद्वारा उसका मोहित होना तथा गर्भावस्थाकी प्रतिज्ञाको भुला देना गरुडजीने कहा-हे केशव! नरकसे आया हुआ जीव माताके गर्भ में…

पांचवा अध्याय

कर्मविपाकवश मनुष्यको अनेक योनियों और विविध रोगोंकी प्राप्ति गरुडजीने कहा-हे केशव! जिस-जिस पापसे जो-जो चिह्न प्राप्त होते हैं और जिन-जिन योनियोंमें जीव जाते हैं, वह मुझे बताइये ॥१॥ श्रीभगवान्ने कहा-नरकसे आये हुए पापी जिन पापोंके द्वारा जिस योनिमें जाते हैं…

चौथा अध्याय

नरक प्रदान करानेवाले पापकर्म श्रीभगवान् बोले-सदा पापकर्मों में लगे हुए, शुभ कर्मसे विमुख प्राणी एक नरकसे दूसरे नरकको, एक दुःखके बाद दूसरे दुःखको तथा एक भयके बाद दूसरे भयको प्राप्त होते हैं ॥ २॥ धार्मिक जन धर्मराजपुरमें तीन दिशाओंमें स्थित…

तीसरा अध्याय

यमयातनाका वर्णन, चित्रगुप्तद्वारा श्रवणोंसे प्राणियोंके शुभाशुभ कर्मके विषयमें पूछना, श्रवणोंद्वारा वह सब धर्मराजको बताना और धर्मराजद्वारा दण्डका निर्धारण गरुडजीने कहा-हे केशव! यममार्गकी यात्रा पूरी करके यमके भवनमें जाकर पापी किस प्रकारकी यातनाको भोगता है? वह मुझे बतलाइये ॥१॥ श्रीभगवान् बोले-हे…

दूसरा अध्याय

यममार्गकी यातनाओंका वर्णन, वैतरणी नदीका स्वरूप, यममार्गके सोलह पुरोंमें क्रमश: गमन तथा वहाँ पुत्रादिकोंद्वारा दिये गये पिण्डदानको ग्रहण करना गरुडजीने कहा-हे केशव! यमलोकका मार्ग किस प्रकार दुःखदायी होता है। पापीलोग वहाँ किस प्रकार जाते हैं, वह मुझे बताइये ॥१॥ श्रीभगवान्…

पहला अध्याय

भगवान् विष्णु तथा गरुडके संवादमें गरुडपुराण-सारोद्धारका उपक्रम, पापी मनुष्योंकी इस लोक तथा परलोकमें होनेवाली दुर्गतिका वर्णन, दशगात्रके पिण्डदानसे यातनादेहका निर्माण धर्म ही जिसका सुदृढ़ मूल है, वेद जिसका स्कन्ध (तना) है, पुराणरूपी शाखाओंसे जो समृद्ध है, यज्ञ जिसका पुष्प है…