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तेरहवाँ अध्याय

अशौचकालका निर्णय, अशौचमें निषिद्ध कर्म, सपिण्डीकरणश्राद्ध, पिण्डमेलनकी प्रक्रिया, शय्यादान, पददान तथा गयाश्राद्धकी महिमा गरुडजीने कहा-हे प्रभो! सपिण्डनकी विधि, सूतकका निर्णय और शय्यादान तथा पददानकी सामग्री एवं उनकी महिमाके विषयमें कहिये ॥१॥ श्रीभगवान्ने कहा-हे तार्थ्य! सपिण्डीकरण आदि सम्पूर्ण क्रियाओंके विषयमें बतलाता…

बारहवाँ अध्याय

एकादशाहकृत्य-निरूपण, मृत-शय्यादान, गोदान, घटदान, अष्टमहादान, वृषोत्सर्ग, मध्यमषोडशी, उत्तमषोडशी एवं नारायणबलि गरुडजीने कहा-हे सुरेश्वर ! ग्यारहवें दिनके कृत्य-विधानको भी बताइये और हे जगदीश्वर! वृषोत्सर्गकी विधि भी बताइये ॥१॥ श्रीभगवान्ने कहा-ग्यारहवें दिन प्रातःकाल ही जलाशयपर जाकर प्रयत्नपूर्वक सभी औचंदैहिक क्रिया करनी चाहिये॥२॥…

ग्यारहवाँ अध्याय

दशगात्र-विधान गरुडजी बोले-हे केशव! आप दशगात्रकी विधिके सम्बन्धमें बताइये, इसके करनेसे कौन-सा पुण्य प्राप्त होता है और पुत्रके अभावमें इसको किसे करना चाहिये ॥१॥ श्रीभगवान् बोले-हे तार्क्ष्य ! अब मैं दशगात्रविधिको तुमसे कहता हूँ, जिसको करनेसे सत्पुत्र पितृ-ऋणसे मुक्त हो…

दशवाँ अध्याय

मृत्युके अनन्तरके कृत्य, शव आदि नामवाले छः पिण्डदानोंका फल, दाहसंस्कारकी विधि, पंचकमें दाहका निषेध, दाहके अनन्तर किये जानेवाले कृत्य, शिशु आदिकी अन्त्येष्टिका विधान गरुडजी बोले-हे विभो! अब आप पुण्यात्मा पुरुषोंके शरीरके दाहसंस्कारका विधान बतलाइये और यदि पत्नी सती हो तो…

नवाँ अध्याय

मरणासन्न व्यक्तिके निमित्त किये जानेवाले कृत्य गरुडजी बोले-हे प्रभो! आपने आतुरकालिक दानके संदर्भमें भलीभाँति कहा। अब म्रियमाण (मरणासन्न) व्यक्तिके लिये जो कुछ करना चाहिये, उसे बताइये ॥१॥ श्रीभगवान्ने कहा-हे तार्क्ष्य ! जिस विधानसे मनुष्य मरनेपर सद्गति प्राप्त करते हैं, शरीर-त्याग…

आठवाँ अध्याय

आतुरकालिक (मरणकालिक ) दान एवं मरणकालमें भगवन्नाम-स्मरणका माहात्म्य, अष्ट महादानोंका फल तथा धर्माचरणकी महिमा गरुडजीने कहा-हे प्रभो! पुण्यात्माओंकी सारी पारलौकिक क्रियाओंके सम्बन्धमें मुझे बताइये। पुत्रोंको जिस प्रकार वह क्रिया करनी चाहिये, उसे उसी प्रकार कहिये॥१॥ श्रीभगवान्ने कहा-हे तार्थ्य! मनुष्योंके हितकी…

सातवाँ अध्याय

पुत्रकी महिमा, दूसरेके द्वारा दिये गये पिण्डदानादिसे प्रेतत्वसे मुक्ति-इसके प्रतिपादनमें राजा बभ्रुवाहन तथा प्रेतकी कथा सूतजीने कहा-ऐसा सुनकर पीपलके पत्तेकी भाँति काँपते हुए गरुडजीने प्राणियोंके उपकारके लिये पुनः भगवान् विष्णुसे पूछा- ॥१॥ गरुडजीने कहा-हे स्वामिन् ! किस उपायसे मनुष्य प्रमादवश…

छठा अध्याय

जीवकी गर्भावस्थाका दुःख, गर्भमें पूर्वजन्मोंके ज्ञानकी स्मृति, जीवद्वारा भगवान से अब आगे दुष्कर्मोंको न करनेकी प्रतिज्ञा, गर्भवाससे बाहर आते ही वैष्णवी मायाद्वारा उसका मोहित होना तथा गर्भावस्थाकी प्रतिज्ञाको भुला देना गरुडजीने कहा-हे केशव! नरकसे आया हुआ जीव माताके गर्भ में…

पांचवा अध्याय

कर्मविपाकवश मनुष्यको अनेक योनियों और विविध रोगोंकी प्राप्ति गरुडजीने कहा-हे केशव! जिस-जिस पापसे जो-जो चिह्न प्राप्त होते हैं और जिन-जिन योनियोंमें जीव जाते हैं, वह मुझे बताइये ॥१॥ श्रीभगवान्ने कहा-नरकसे आये हुए पापी जिन पापोंके द्वारा जिस योनिमें जाते हैं…

चौथा अध्याय

नरक प्रदान करानेवाले पापकर्म श्रीभगवान् बोले-सदा पापकर्मों में लगे हुए, शुभ कर्मसे विमुख प्राणी एक नरकसे दूसरे नरकको, एक दुःखके बाद दूसरे दुःखको तथा एक भयके बाद दूसरे भयको प्राप्त होते हैं ॥ २॥ धार्मिक जन धर्मराजपुरमें तीन दिशाओंमें स्थित…