तेरहवाँ अध्याय
अशौचकालका निर्णय, अशौचमें निषिद्ध कर्म, सपिण्डीकरणश्राद्ध, पिण्डमेलनकी प्रक्रिया, शय्यादान, पददान तथा गयाश्राद्धकी महिमा गरुडजीने कहा-हे प्रभो! सपिण्डनकी विधि, सूतकका निर्णय और शय्यादान तथा पददानकी सामग्री एवं उनकी महिमाके विषयमें कहिये ॥१॥ श्रीभगवान्ने कहा-हे तार्थ्य! सपिण्डीकरण आदि सम्पूर्ण क्रियाओंके विषयमें बतलाता…