चौथा अध्याय

नरक प्रदान करानेवाले पापकर्म

श्रीभगवान् बोले-सदा पापकर्मों में लगे हुए, शुभ कर्मसे विमुख प्राणी एक नरकसे दूसरे नरकको, एक दुःखके बाद दूसरे दुःखको तथा एक भयके बाद दूसरे भयको प्राप्त होते हैं ॥ २॥

धार्मिक जन धर्मराजपुरमें तीन दिशाओंमें स्थित द्वारोंसे जाते हैं और पापी पुरुष दक्षिण-द्वारके मार्गसे ही वहाँ जाते हैं॥३॥

इसी महादुःखदायी (दक्षिण) मार्गमें वैतरणी नदी है; उसमें जो पापी पुरुष जाते हैं, उन्हें मैं तुम्हें बताता हूँ- ॥४॥

जो ब्राह्मणोंकी हत्या करनेवाले, सुरापान करनेवाले, गोघाती, बालहत्यारे, स्त्रीकी हत्या करनेवाले, गर्भपात करनेवाले और गुप्तरूपसे पाप करनेवाले हैं, जो गुरुके धनको हरण करनेवाले, देवता अथवा ब्राह्मणका धन हरण करनेवाले, स्त्रीद्रव्यहारी, बालद्रव्यहारी हैं, जो ऋण लेकर उसे न लौटानेवाले, धरोहरका अपहरण करनेवाले, विश्वासघात करनेवाले, विषान्न देकर मार डालनेवाले, दूसरेके दोषको ग्रहण करनेवाले, गुणोंकी प्रशंसा न करनेवाले, गुणवानोंके साथ डाह रखनेवाले, नीचोंके साथ अनुराग रखनेवाले, मूढ, सत्संगतिसे दूर रहनेवाले हैं, जो तीर्थों, सज्जनों, सत्कर्मों, गुरुजनों और देवताओंकी निन्दा करनेवाले हैं, पुराण, वेद, मीमांसा, न्याय और वेदान्तको दूषित करनेवाले हैं॥५-९॥

दुःखी व्यक्तिको देखकर प्रसन्न होनेवाले, प्रसन्नको दुःख देनेवाले, दुर्वचन बोलनेवाले तथा सदा दूषित चित्तवृत्तिवाले हैं ॥१०॥

जो हितकर वाक्य और शास्त्रीय वचनोंको कभी न सुननेवाले, अपनेको सर्वश्रेष्ठ समझनेवाले, घमण्डी, मूर्ख होते हुए अपनेको विद्वान् समझनेवाले हैं-ये तथा अन्य बहुत पापोंका अर्जन करनेवाले अधर्मी जीव रात-दिन रोते हुए यममार्गमें जाते हैं ॥११-१२॥

यमदूतोंके द्वारा पीटे जाते हुए (वे पापी) वैतरणीकी ओर जाते हैं और उसमें गिरते हैं, ऐसे उन पापियोंके विषयमें मैं तुम्हें बताता हूँ- ॥१३॥

जो माता, पिता, गुरु, आचार्य तथा पूज्यजनोंको अपमानित करते हैं, वे मनुष्य वैतरणीमें डूबते हैं ॥१४॥

जो पुरुष पतिव्रता, सच्चरित्र, उत्तम कुलमें उत्पन्न, विनयसे युक्त स्त्रीको द्वेषके कारण छोड़ देते हैं, वे वैतरणीमें पड़ते हैं ॥ १५ ॥

जो हजारों गुणोंके होनेपर भी सत्पुरुषोंमें दोषका आरोपण करते हैं और उनकी अवहेलना करते हैं, वे वैतरणीमें पड़ते हैं ॥ १६॥

वचन दे करके जो ब्राह्मणको यथार्थरूपमें दान नहीं देता है और बुला करके जो व्यक्ति नहीं है’ ऐसा कहता है, वे दोनों सदा वैतरणीमें निवास करते हैं ॥ १७॥

स्वयं दी हुई वस्तुका जो अपहरण कर लेता है, दान देकर पश्चात्ताप करता है, जो दूसरेकी आजीविकाका हरण करता है, दान देनेसे रोकता है, यज्ञका विध्वंस करता है, कथा-भंग करता है, क्षेत्रकी सीमाका हरण कर लेता है और जो गोचरभूमिको जोतता है, वह वैतरणीमें पड़ता है। ब्राह्मण होकर रसविक्रय करनेवाला, वृषलीका पति (शूद्र स्त्रीका ब्राह्मणपति), वेदप्रतिपादित यज्ञके अतिरिक्त अपने लिये पशुओंकी हत्या करनेवाला, ब्रह्मकर्मसे च्युत, मांसभोजी, मद्य पीनेवाला, उच्छृखल स्वभाववाला, शास्त्रके अध्ययनसे रहित (ब्राह्मण), वेद पढ़नेवाला शूद्र, कपिलाका दूध पीनेवाला शूद्र, यज्ञोपवीत धारण करनेवाला शूद्र, ब्राह्मणीका पति बननेवाला शूद्र, राजमहिषीके साथ व्यभिचार करनेवाला, परायी स्त्रीका अपहरण करनेवाला, कन्याके साथ कामाचारकी इच्छा रखनेवाला तथा जो सतीत्व नष्ट करनेवाला है— ॥१८-२३॥

ये सभी तथा इसी प्रकार और भी बहुत निषिद्धाचरण करनेमें उत्सुक तथा शास्त्रविहित कर्मोंको त्यागनेवाले वे मूढजन वैतरणीमें गिरते हैं ॥ २४॥

सभी मार्गोंको पार करके पापी यमके भवनमें पहुँचते हैं और पुनः यमकी आज्ञासे आकर दूतलोग उन्हें वैतरणीमें फेंक देते हैं ॥ २५ ॥

हे खगराज! यह वैतरणी नदी (कष्ट प्रदान करनेवाले) सभी प्रमुख नरकोंमें भी सर्वाधिक कष्टप्रद है। इसलिये यमदूत पापियोंको उस वैतरणीमें फेंकते हैं ॥ २६॥

जिसने अपने जीवनकालमें कृष्णा (काली) गौका दान नहीं किया अथवा मृत्युके पश्चात् जिसके उद्देश्यसे बान्धवोंद्वारा कृष्णा गौ नहीं दी गयी तथा जिसने अपनी और्ध्वदैहिक क्रिया नहीं कर ली या जिसके उद्देश्यसे और्ध्वदैहिक क्रिया नहीं की गयी हो, वे वैतरणीमें महान् दुःख भोग करके वैतरणी तटस्थित शाल्मली-वृक्षों जाते हैं ॥ २७॥

जो झूठी गवाही देनेवाले, धर्मपालनका ढोंग करनेवाले, छलसे धनका अर्जन करनेवाले, चोरीद्वारा आजीविका चलानेवाले, अत्यधिक वृक्षोंको काटनेवाले, वन और वाटिकाको नष्ट करनेवाले, व्रत और तीर्थका परित्याग करनेवाले, विधवाके शीलको नष्ट करनेवाले हैं ॥ २८-२९ ॥

जो स्त्री अपने पतिको दोष लगाकर परपुरुषमें आसक्त होनेवाली है-ये सभी और इस प्रकारके अन्य पापी भी शाल्मली-वृक्षद्वारा बहुत ताडना प्राप्त करते हैं ॥ ३०॥

पीटनेसे नीचे गिरे हुए उन पापियोंको यमदूत नरकोंमें फेंकते हैं। उन नरकोंमें जो पापी गिरते हैं, उनके विषयमें मैं तुम्हें बतलाता हूँ- ॥ ३१॥

(वेदकी निन्दा करनेवाले) नास्तिक, मर्यादाका उल्लंघन करनेवाले, कंजूस, विषयोंमें डूबे रहनेवाले, दम्भी तथा कृतघ्न मनुष्य निश्चय ही नरकोंमें गिरते हैं ॥ ३२ ॥

जो कुँआ, तालाब, बावली, देवालय तथा सार्वजनिक स्थान (धर्मशाला आदि)-को नष्ट करते हैं, वे निश्चय ही नरकमें जाते हैं ॥ ३३ ॥

स्त्रियों, छोटे बच्चों, नौकरों तथा श्रेष्ठजनोंको छोड़कर एवं पितरों और देवताओंकी पूजाका परित्याग करके जो भोजन करते हैं, वे नरकगामी होते हैं ॥ ३४॥

जो मार्गको कीलोंसे, पुलोंसे, लकड़ियोंसे तथा पत्थरों एवं काँटोंसे रोकते हैं, निश्चय ही वे नरकगामी होते हैं ॥ ३५ ॥

जो मन्द पुरुष भगवान् शिव, भगवती शक्ति, नारायण, सूर्य, गणेश, सद्गुरु और विद्वान् इनकी पूजा नहीं करते, वे नरकमें जाते हैं ॥ ३६॥

दासीको अपनी शय्यापर आरोपित करनेसे ब्राह्मण अधोगतिको प्राप्त होता है और शूद्रामें संतान उत्पन्न करनेसे वह ब्राह्मणत्वसे ही च्युत हो जाता है। वह ब्राह्मणाधम कभी भी नमस्कारके योग्य नहीं होता। जो मूर्ख ऐसे ब्राह्मणकी पूजा करते हैं, वे नरकगामी होते हैं ॥ ३७-३८॥

दूसरोंके कलहसे प्रसन्न होनेवाले जो मनुष्य ब्राह्मणोंके कलह तथा गौओंकी लड़ाईको नहीं रुकवाते हैं (प्रत्युत ऐसा देखकर प्रसन्न होते हैं) अथवा उसका समर्थन करते हैं, बढ़ावा देते हैं, वे अवश्य ही नरकमें जाते हैं ॥३९॥

जिसका कोई दूसरा शरण नहीं है, ऐसी पतिपरायणा स्त्रीके ऋतुकालकी द्वेषवश उपेक्षा करनेवाले निश्चित ही नरकगामी होते हैं ॥ ४०॥ जो कामान्ध पुरुष रजस्वला स्त्रीसे गमन करते हैं अथवा पर्वके दिनों (अमावास्या, पूर्णिमा आदि)-में, जलमें, दिनमें तथा श्राद्धके दिन कामुक होकर स्त्रीसंग करते हैं, वे नरकगामी होते हैं ॥ ४१ ॥

जो अपने शरीरके मलको आग, जल, उपवन, मार्ग अथवा गोशालामें फेंकते हैं, वे निश्चित ही नरकमें जाते हैं॥ ४२ ॥

जो हथियार बनानेवाले, बाण और धनुषका निर्माण करनेवाले तथा इनका विक्रय करनेवाले हैं, वे नरकगामी होते हैं ॥ ४३॥

चमड़ा बेचनेवाले वैश्य, केश (योनि)-का विक्रय करनेवाली स्त्रियाँ तथा विषका विक्रय करनेवाले ये सभी नरकमें जाते हैं ॥ ४४ ॥

जो अनाथके ऊपर कृपा नहीं करते हैं, सत्पुरुषोंसे द्वेष करते हैं और निरपराधको दण्ड देते हैं, वे नरकगामी होते हैं ॥ ४५ ॥

आशा लगाकर घरपर आये हुए ब्राह्मणों और याचकोंको पाकसम्पन्न (भोजनके बने) रहनेपर भी जो भोजन नहीं कराते, वे निश्चय ही नरक प्राप्त करनेवाले होते हैं ॥ ४६॥

जो सभी प्राणियोंमें विश्वास नहीं करते और उनपर दया नहीं करते तथा जो सभी प्राणियोंके प्रति कुटिलताका व्यवहार करते हैं, वे निश्चय ही नरकगामी होते हैं ॥ ४७ ॥

जो अजितेन्द्रिय पुरुष नियमोंको स्वीकार करके बादमें उन्हें त्याग देते हैं,वे नरकगामी होते हैं ॥ ४८ ॥

जो अध्यात्मविद्या प्रदान करनेवाले गुरुको नहीं मानते और जो पुराणवक्ताको नहीं मानते, वे नरकमें जाते हैं ॥ ४९ ॥

जो व्यक्ति मित्रसे द्रोह करते हैं, जो व्यक्तियोंकी आपसी प्रीतिका भेदन करते हैं तथा जो दूसरेकी आशाको नष्ट करते हैं, वे निश्चय ही नरकमें जाते हैं ॥ ५० ॥

विवाहको भंग करनेवाला, देवयात्रामें विघ्न करनेवाला तथा तीर्थयात्रियोंको लूटनेवाला घोर नरकमें वास करता है और वहाँसे उसका पुनरावर्तन नहीं होता ॥५१॥

जो महापापी घर, गाँव तथा जंगलमें आग लगाता है, यमदूत उसे ले जाकर अग्निकुण्डोंमें पकाते हैं ॥५२॥

इस अग्निसे जले हुए अंगवाला वह पापी जब छायाकी याचना करता है तो यमदूत उसे असिपत्र नामक वनमें ले जाते हैं॥५३॥

जहाँ तलवारके समान तीक्ष्ण पत्तोंसे उसके अंग जब कट जाते हैं, तब यमदूत उससे कहते हैं-रे पापी! शीतल छायामें सुखकी नींद सो॥५४॥

जब वह प्याससे व्याकुल होकर जल पीनेकी इच्छासे पानी माँगता है तो दूतोंके द्वारा उसे खौलता हुआ तेल पीनेके लिये दिया जाता है॥ ५५ ॥

पानी पीयो और अन्न खाओ -ऐसा उस समय उनके द्वारा कहा जाता है। उस अति उष्ण तेलके पीते ही उनकी आँतें जल जाती हैं और वे गिर पड़ते हैं ॥ ५६॥

किसी प्रकार पुनः उठकर अत्यन्त दीनकी भाँति प्रलाप करते हैं। विवश होकर ऊर्ध्व श्वास लेते हुए वे कुछ कहनेमें भी समर्थ नहीं होते ॥ ५७ ॥

हे तार्क्ष्य! इस प्रकारकी पापियोंकी बहुत-सी यातनाएँ बतायी गयी हैं। विस्तारपूर्वक इन्हें कहनेकी क्या आवश्यकता? इनके सम्बन्धमें सभी शास्त्रोंमें कहा गया है॥५८॥

इस प्रकार हजारों नर-नारी नारकीय यातनाको भोगते हुए प्रलयपर्यन्त घोर नरकोंमें पकते रहते हैं ॥ ५९॥

उस पापका अक्षय फल भोगकर पुनः वहीं पैदा होते हैं और यमकी आज्ञासे पृथ्वीपर आकर स्थावर आदि योनियोंको प्राप्त करते हैं॥६० ॥

वृक्ष, गुल्म, लता, वल्ली, गिरि (पर्वत) तथा तृण आदि ये स्थावर योनियाँ कही गयी हैं; ये अत्यन्त मोहसे आवृत हैं॥६१॥

कीट, पशु-पक्षी, जलचर तथा देव-इन योनियोंको मिलाकर चौरासी लाख योनियाँ कही गयी हैं ॥६२॥

इन सभी योनियोंमें घूमते हुए जीव मनुष्ययोनि प्राप्त करते हैं और मनुष्ययोनिमें भी नरकसे आये व्यक्ति चाण्डालके घरमें जन्म लेते हैं तथा उसमें भी (कुष्ठ आदि) पापचिह्नोंसे वे बहुत दुःखी रहते हैं। किसीको गलित कुष्ठ हो जाता है, कोई जन्मसे अन्धे होते हैं और कोई महारोगसे व्यथित होते हैं। इस प्रकार पुरुष और स्त्रीमें पापके चिह्न दिखायी पड़ते हैं ॥६३-६४ ॥

॥ इस प्रकार गरुडपुराणके अन्तर्गत सारोद्धारमें नरकप्रदपापचिह्ननिरूपण नामक चौथा अध्याय पूरा हुआ॥४॥

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